लॉक डाउन के दूसरे चरण के बारे में सुन के मेरे दिल के अजब सी बेचैनी होने लगी
हा ये सच था मुझे जबरदस्त छुट्टी चाहिए थी परिवार के साथ बेहतरीन समय काटने का आनंद मिल रहा था, फिर भी मै ख़ुश नहीं हो पा रहा था क्योंकि मेरे चेहरे की मुस्कान इस लॉकडाउन में फसी थी
lockdown 2.0 |
मेरी भी जिंदगी कोई हवाई यात्रा नहीं कर रही थी इसका हाल भी सड़क पर चलती पुरानी साईकिल जैसा था।
अच्छी बात ये थी कि मेरे जीवन में अभी कोई आफत नहीं आई थी और न ही मै चाहता हू कोई की कोई आफत आए और नई समस्या जन्म ले।
लेकिन ये दुनिया तुम्हे बर्बाद करने के लिए हमेशा तैयार ही रहती हैं यहां तक कि हमारे मा बाप भी समय की साजिश का शिकार बन जाते है ।
वैसे मेरे दिल में भी कभी कभी इच्छा होती है कि मेरी जिंदगी में भी कोई आफत आए लेकिन दिमाग याद दिला देता है कि अभी उस आफत को झेलने की शायद मुझमें ताक़त नहीं
मै नहीं चाहता कि मै उसकी जिंदगी को आफत बना दू
खैर अभी तो बस सही समय का इंतजार ही किया जा सकता था और मै वहीं कर रहा था लेकिन दिल में बड़ी बेचैनी थी कि कहीं ऐसा न हो फील करने के लिए हमारे रिश्ते में कोई फीलिंग्स ही न बचे ।
क्योंकि मेरा दिल कितना भी खुश हो ले लेकिन दिमाग को अभी भी अंदाजा है कि शायद मेरी सारी भावनाए ,प्रेम और जो कुछ भी अफेक्शन है उसके प्रति वो सब एक तरफा है।
इस समय खुद ही खुद से लड़ना पड़ रहा था
दिल तो हर समय यही सोचता रहता था कि " क्या वहां सब ठीक ठाक है??
खुद ही जवाब भी मिल जाता कि अगर कुछ गडबड हुई तो भी तुम कर क्या लोगे??
इस लॉक डाउन में फसे मजरूर ,छात्र ,परदेसी कि हालात पर जब जब कोई न्यूज़ आती तो मेरे दिमाग की सुई इसी बात पर अटक जाती थी कि
कैसे काट रही होगी ये मुश्किल दिन ...!
पूरे देश का ऐसा हाल की अमीर, गरीब, सक्षम, या लाचार जो भी इस हालात में फसा सबकी हालत लगभग एक जैसी ही थी।
अब इसी दौरान पागल दिल थोड़ा और पागल होने लगा मै उसको कॉल करने और उसकी आवाज सुनने को बेकरार सा होने लगा और मैंने उसको कॉल की
खैर अंजाम मुझे पहले से ही पता था कि इस चक्कर में हमारी दोस्ती और भी खराब न हो जाए लेकिन दिल है कि मानता ही नहीं।
मैंने बचने का पूरा प्रयास किया कि मै कोई गडबड न करूं किसी को दिक्कत न दू लेकिन मै भी कुछ मजबूर सा था
आखिर उसने कह ही दिया , मुझसे बात न किया करो।
हालांकि मुझे इस बात का अंदाजा पहले से था लेकिन बिना बेइज्जती कराएं ये दिल कहा मानने वाला था अब बेज्जत होकर इसकी चुल्ल भी ठंडी हो गई जो की मेरे लिए अच्छा था।
खैर अब फोन तो मै कर नहीं सकता था और उसका फोन मुझे आएगा ऐसा कोई ख्याल मेरे मन में दूर दूर तक नहीं था।
'उसने मुझे बताया था कि सब स्वस्थ और मस्त है किसी को कोई भी प्रॉब्लम नहीं है और मेरी चिंता अनावश्यक ही है '
ये सब जानकर अच्छा तो लगा पर सच्चा नहीं लेकिन मै तो कोई सवाल भी नहीं उठा सकता था
क्योंकि ज्यादा नेता बन कर रही बची नाम की दोस्ती को खतरे में डालना मुझे समझ नहीं आया
लेकिन दिल को तसल्ली देने के लिए अब मै उसके अन्य दोस्तो से उसका हाल चाल ले लेता था
बात न करने का वादा इतना कठिन होगा नहीं पता था
एक दिन मेरे मन ने कहा , कॉल करने को मना है पर chat??
मुझे पता है कि ये भी शायद वादा खिलाफी ही है पर अब दिल को कौन समझाए।
और मैंने बीच बीच में थोड़ा बहुत मेसेज किए लेकिन बड़ी ही सावधानी से कहीं ब्लॉक न हो जाऊं
पर वो कहावत है न ...
जब तक ब्लॉक न हो जाओ तो प्यार कैसा??
और फिर मै भी कभी ब्लॉक तो कभी अनब्लॉक होकर दिन गुजार रहा था
अब मेरा सब्र टूट गया क्योंकि लॉक डाउन ख़तम होने वाला था और मै 1 दिन भी निश्चिंत होकर नहीं सो पाया न ही कुछ एंजॉय कर पाया था मैंने भोले बाबा को याद किया
धीरे धीरे आखिरी सप्ताह लॉक डाउन 2.0 भी ख़तम होने लगा
और फिर से एक दिमाग खराब करने वाली न्यूज़ मिली
लॉक डाउन अभी और आगे चलेगा
लगभग 100 ग्राम खून सुलग गया
हा ये देश हित में है मेरे हित में भी है लेकिन उन प्रवासी ,मजदूर, छात्र छात्राओं के हित में नहीं ...
40 दिन में तो गैस का सिलेंडर भी ख़तम हो जाता है
जो सामान्य रूप से जी भी रहे होंगे उनकी भी जिंदगी असामान्य होने की संभावनाएं बढ़ती जा रही थी।
मुझे लॉक डाउन की स्थितियां दिख रही है मुझे भी दिख रहा था कि चीजे खरीदना कितना कठिन है कयोंकि कुछ भी अब पहले जैसा नहीं रहा । लॉक डाउन चाहे जितना बेहतर प्रयास रहा हो लेकिन निष्कर्ष इसका भी कुछ नोट बन्दी जैसा ही जा रहा है जैसे की जनता के सपोर्ट के बाद भी सरकारी व्यवस्था और हमारे भ्रष्टाचारी रवैए ने फेल ही कर दी.
आज भी जनता वही है
मुझे इससे लॉक डाउन के नियम और स्वच्छता ,को बरकरार रखने की उम्मीद लगभग न ही है हमारे देश के हालात सिर्फ भगवान ही बचा सकते है
लेकिन हम सबकुछ भगवान पर ही नहीं छोड़ सकते हमें प्रयास तो करना ही होगा...
लेकिन ये प्रयास भी कम जान लेवा नहीं क्योंकि सरकार मजदूरों को ,व्यापारियों को तो राहत पैकेज दे सकती है
श्रमिक को भोजन दे सकती है वोटर को राशन दे सकती है
लेकिन भारत में 10 करोड़ से ऊपर मजदूर अनॉर्गनिज्ड सेक्टर से है जो न तो वहां के वोटर है न ही वहां किसी कर्म में पंजीकृत को बस देहाडी मजदूरी से जिंदगी गुजार रहे
चलो सरकार इनको भी पहचान कर भोजन पानी उपलब्ध करा देगी लेकिन फिर भी 1 सेक्टर है जिसकी बात कोई नहीं करता को कि है वैश्याब्रत्ति
हमारी सरकार तो ऑफिशियली स्वीकार भी नहीं करती की ऐसा कुछ हमारे देश में होता है
लेकिन प्रत्यक्ष को तो प्रमाण कि जरूरत नहीं होती
वो तो बता भी नहीं सकती कि वो दिल्ली में क्या काम करती थी ??
उनकी भी पैदल चलने वाली तस्वीर दिखी पर हमारा मीडिया नहीं दिखायेगा शायद वो भी यही मानते है कि ऐसा कोई सेक्टर देश में है ही नहीं
कौन कराएगा उनका सनिटाइजेशन जहा कमरे में 5 औरते साथ रहती हो
कैसे हम पहुंचाएंगे उनके खाते में पैसे जब उनका कोई खाता ही नही असली नाम ही नहीं कोई ठोस पहचान ही नहीं उनका धंधा उसी दिन ख़तम हो गया जिस दिन लॉक डाउन की घोषणा हुई
इतने दिन किसने कैसे गुजारे दिए कहना मुश्किल है
मै किसी को दोष नहीं दे रहा क्योंकि मेरे पास कोई अधिकार नहीं लेकिन देश की हालत देख के लगता है कि हमारे लोग कोरॉना से भले ही 1% मरते लेकिन इन अव्यवस्थाओ से 25% लोग अधमरे जैसे हालत में है
मै गलतियां नहीं गिना रहा बा विचार कर रहा हू की इतनी हड़बद और अव्यवस्था मै लोग अपने घर ही पहुंच जाए तो बड़ी उपलब्धि होगी
क्योंकि
रोती बिलखती शक्ल देख कर दिमागी संतुलन भी बिगड़ सा जाता है
खैर इतने सब बवाल में एक अच्छी खबर आई कि वो अपने घर में है ,सुरक्षित और स्वस्थ
मै ख़ुश होने ही लगा था कि मुझे ये भी पता चला की वो लगभग 1 हफ्ते से ज्यादा समय से घर पर है।
ये बात सुन कर खुशी का ग्राफ बराबर हो गया
सोचने लगा... शायद मै इतना भी अच्छा दोस्त नहीं जिसे सब कुछ बताया जाए ..!
शायद मै ही खुद को कुछ ज्यादा ही इंपॉर्टेंस दे रहा हूं
खैर...!
अब सोचने का काम जिसका है वो तो अपना काम करेगा ही
लेकिन दिल ने डिसाइड किया कि आज तो मैगी बनेगी और सब में बटेगी।
खैर धीरे धीरे कुछ दिन और बीत गए मैंने अहसास किया की ये वाला लॉकडॉउन कुछ राहत भरा है दिल की उथल पुथल के साथ साथ दिमाग की भी कसरत कम हो गई
क्योंकि आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुलभ हो गई थी लेकिन टीवी पर देश की असलियत कुछ खास बदली नहीं थी वो सब अभी भी जैसा का तैसा ही था।
या ऐसा कह लो कि इस लॉक डाउन 3.0 में हालत और भी खराब हो रहे थे।
कभी कभी लगता है कि लॉक डाउन के वर्जन कभी कबतम भी होंगे????
खैर अभी के लिए तो लोकडाउन जारी ही रहेगा...!
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