भारत और भ्रष्टाचार

मेरा मत है कि भारत और भ्रष्टाचार का इतना गहरा संबंध है कि किसी एक को भी छती पहुंचेगी तो दोनो ही प्रभावित होंगे।

खैर मुझे आप सब नहीं जानते तो अपने बारे में बता दू , की मै एक सामान्य सा ब्वायज स्कूल में पढ़ा ऐसा लड़का हू जिसे सबने हमेशा अच्छा बनाने की कोशिश की और काफी हद तक अच्छा बन जाने के बाद, मुझे लगा कि ये बकचोद दुनिया कभी खुश नहीं हो सकती
तो बताता हू की समस्या क्या है?

झूट, दारू ,सिगरेट ,शराब ,लड़की ,चठिया,लालच, बेईमानी से मीलों कि दूरी बनाने के बावजूद कुछ लोग खुश नहीं होते
क्योंकि आजकल के समाज का नजरिया ये है
की अगर बन्दा ईमानदार है तो ये उसकी क्वालिटी नहीं है बल्कि उसमें बेईमानी करने की हिम्मत नहीं है 
जब ऐसे बेज्जती होगी ईमानदारी की कौन बचेगा ईमानदार?

शायद किसी को ईमानदारी से कोई लेना देना भी नहीं था हम को किताबो में ईमानदारी का पाठ इसलिए पढ़ाया गया क्योंकि अब ये तो नहीं पढ़ाया
 जा सकता कि बेईमानी ,चोरी ,मक्कारी ,भ्रष्टाचार करो।




ये कुछ ऐसी चीजे है जो कोई कहता नहीं सिखाता तो नहीं बस समाज का ऐसा अभिन्न अंग है जिसे न सीखने वाला असमाजिक बन जाता है।

उदाहरण: कोई नहीं कहता की शराब अच्छी चीज है किसी भी विद्यालय में शराब का गुणगान नहीं होता किसी का बाप कितना भी पियक्कड़ क्यों न हो वो अपने बेटे को शराबी बनाना नहीं चाहता ,कुल मिलाकर शराब हमारी छवि पर नकारात्मक प्रभाव डालती है ऐसा हमें हमेशा ही बोला गया है 
लेकिन जब वास्तविक समाज की बात हो तो कोई भी बड़ी पार्टी में बन्दा जो शराब नहीं पीता उसे लोग किस नजर से देखते है मुझे नहीं लगता कुछ बताने की जरूरत है ?

ऐसे ही जब शादी के लिए लड़का देखने जाएंगे तो भी शराब पीना न पीना कोई मुद्दा नहीं होगा असल मुद्दा होगा सरकारी नौकरी
अगर लड़का सरकारी नौकरी वाला हो तो लड़की का बाप ही शराब पीने के फायदे गिनाने लगता है भले ही खुद के लड़के के साथ इतना भौकाल बनाया की बन्दा स्वीटी सुपाड़ी भी नहीं खाता 
लेकिन जब बात बेटी की है तो शराब पीना कोई बुरी आदत नहीं होती ,बन्दा अमीर है कभी कभी पी लेता है 
इट्स ओके 


इतना सब देख के जो बन्दा सज्जन पुरुष बन भी गया होता है वो भी सोचता है कि हमें सज्जन बनने की सलाह सिर्फ इसलिए दी जाती है ताकि लोग हमे आसानी से समझ सके और उपयोग कर सके 
उस को हमसे जब तक लाभ है तब तक ही वो हम को प्रोत्साहित करेगा जब लाभ ख़तम तो प्यार भी ख़तम

या कहो की काम हो जाने के बाद दुनिया लात मार देती है।
लोगो को लगता है हम भारतीय जातिवादी है ,या सांप्रदायिक भावनाओं से ग्रसित है ,सच पूछो तो मुझे ऐसा नहीं लगता क्योंकि मुख्य बीमारी कुछ और ही है

असली बीमारी है हमारी शोषण करने की बीमारी ये बीमारी इतनी खतरनाक है इसमें हम अपने सगे संबंधियों को तक नहीं छोड़ते जिसे भी कमजोर समझते है उसका शोषण करते है फिर चाहे वो महिला या बच्चा हो, गरीब हो पिछड़ा है।
शोषण वाली बीमारी के चलते जातिवाद को ख़तम नहीं किया जा सकता ऐसा नहीं कि ये बीमारी किसी खास वर्ग में ही है लगभग हर घर में दो चार शोषण करने वाले मौजूद है
ऐसा नहीं है कि सिर्फ कमजोरो का ही शोषण होता है इज्जत लुटती है 
जब कोई तगड़ा बन्दा फस जाता है तो उससे विनम्र निवेदन, प्रार्थना, चाटुकारिता आदि से उसके अंदर की जरा सी इंसानियत को अपने फायदे के लिए उपयोग करते हो और वो ताकतवर बन्दा भी बेचारा एक्सप्लोइट हो जाता है।
शोषण करने में हमारा कोई मुकाबला नहीं 
देवदासी प्रथा, बाल विवाह,कन्याभ्रूण हत्या, महिला उत्पीडन, घरेलू हिंसा के इसे शोषण है जिसको लगभग हर घर की महिलाए झेलती है।

अब तुम ही सोचो वो महिला कोन सी अलग जाति की है वो तो हमारा ही हिस्सा होती है हम भारतीय है ऐसे ही है
ऐसा भी नहीं है कि लड़कों का शोषण लडकिया नहीं करती
लडकिया भी कम नहीं है , खर्चा करवाना , जाल में फसाना, दहेज की मांग के झूटे आरोप लगाना, शादी ही इस उद्देश्य से करना की बाद में तलाक देकर अलिमनी ले लूंगी।
लडकिया भी खूब चीट करती है लेकिन हम उनको ज्यादा बदनाम नहीं करते क्योंकि कहीं न कहीं वो भी ये सब सहती आ रही है 


तभी किसी ने कहा था , भारत और भ्रष्टाचार की एक ही राशि के है यदि भ्रष्टाचार ख़तम करने की कोशिश करोगे तो कहीं न कहीं आप भारत को ख़तम कर रहे होगे , भ्रष्टाचार हमेशा छिप कर किया जाता रहा है ताकि दुनिया को दिखा सके कि हमसे तो शरीफ कोई है ही नहीं।
भ्रष्टाचार की सूची में भारत का स्थान हमारी असलियत पूरी दुनिया को चिल्ला चिल्ला के बता रहा है 
लेकिन हम तो नहीं मानते की हम जरा भी भ्रष्ट है
क्योंकि हमारा तर्क है कि चोर को चोरी करते समय ही अगर पकड़े तो उसे चोर घोषित कर सकते है 
चोरी से पहले या बाद में नहीं 
भारत की पहचान आज भी अपनी संस्कृति से है वहीं संस्कृति जो रावण को हराने वाले राम को समाज से हारने के लिए मजबूर करती है
जब भगवान राम भी संस्कृति मे सुधार नहीं कर पाए तो हम लोग क्यों किताबो वाले अच्छे इंसान बनकर समय खराब करे 
बेहतर है इसी समाज के साथ जीना सीख लो या फिर वाकई देश बदल दो!



राजा राम मोहन राय को भी लोग गरियाते है क्योंकि उन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया ,संस्कृति में थोड़ा सुधार किया तो लोग उनको भी अधर्मी और गद्दार कहने से नहीं चूकते।
महात्मा बुद्ध ने भी प्रयास किया और महावीर स्वामी ने भी कि लोग जातिवाद ,पंथवाद और अंधविश्वास से निकले तब से लगभग 2500 साल बीत गए.
अंधभक्त तो आज भी पाए जाते है खैर चमचे तो सदैव से यही थे।

जैसे कुरान के शब्दों के ग़लत अर्थो का प्रयोग कर लोग आतंकवादी तैयार करते है वैसे ही गीता का प्रयोग भी लोग कट्टर और अंधभक्त बनाने के लिए और अपनी दुकान चलाने के लिए ही करते है।

अगर वो सच मे तुम्हारा भला चाहते तो तुम्हारी रुचि और व्यवसाय संबंधित किताब देते ।खैर जो भी है 
यही है , असली इंडिया।


भ्रष्टाचार ख़तम नहीं होना यह इस बात से भी स्पष्ट होता है... की 
जातिवादी आरक्षण ख़तम करने वाले लोगो को ही जबरदस्ती 10% का जबरदस्ती आरक्षण दे दिया ।
कौन मांगा था??? ये फ्री का आरक्षण
लोग तो इस बात से नाराज़ थे कि ग़लत लोगो को आरक्षण न मिले लेकिन इस 10% वाले ने तो मांगने वालो की एकता में फूट डाल दी।
इसी तरह देश के धन को जो जनता से चूसा जाता है उसका और ग़लत वितरण होगा , मूर्तियां बनेंगी ,महल बनेंगे, बाहर वालो को लगेगा भारत काफी अमीर और सभ्य हो रहा है 


टूरिज्म बढ़ेगा और कोई फोरनर भारत दर्शन करने आएगा , और रिक्शा वाला उसे गोल गोल घुमाएगा, कोई उसके मोबाइल से उसकी ही फोटो खींचने के 500₹ लेगा , कोई चूतिया सारे यूरोपियन को अंग्रेज़ समझ कर गुलामी के समय हुए अत्याचारों का बदला लेगा तब उसके समझ आएगा कि हम बाहर से कितने भी बदल जाए कितनी भी नयी सोच हो जाए 
लेकिन हम अपने संस्कार ,विचार ,परम्परा नहीं बदलने वाले

विनम्रता के साथ क्षमा भी मांगता हूं अगर कुछ बेज्जति पूर्ण लगेमै भी आप सब के बीच का ही हू हा आपके जितना दोगला नहीं पर चिंता न करो आप सब के सानिध्य में मुझे भी सुसंस्कृत बनने में ज्यादा देर नहीं लगेगी
वैसे भी अब मै देश नहीं बदलने वाला ।

लेकिन दुनिया के सामने तो गाना होगा
“ मेरा देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है"



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