दोस्त आम बोल चाल में चलने वाला परंतु बड़ा व्यापक शब्द है
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दोस्त के अन्तर्गत वो सभी आ जाते है जो हमारे मिलने वाले है
जैसे: सहपाठी, सहकर्मी, वो सब जिनके साथ तुम मस्त रहते हो दिल की सभी तो नहीं पर कई सारी बातें बता देते है
जिनसे हम स्वतंत्र रूप से विचारो का आदान प्रदान कर पाते है।
बाकी किसी भी रिश्ते में बहुत सारी सीमाएं है
माता, पिता से आप हर सवाल नहीं पूछ सकते, पर दोस्त से कुछ भी सीखा जा सकता है
मेरा मानना है कि मित्र हम को वो सब सिखा देते है जिसकी जरूरत हम को वास्तविक दुनिया में पड़ती है ।
खैर..! सवाल ये है कि इतने सारे दोस्तो में कोन है सच्चा मित्र??
खैर!, सच्चे का तो कुछ कहना मुश्किल है पर अगर बन्दा तुम्हारी खुशी में खुश होता है तो भी वह काफी हद तक बेहतर मित्र है।
क्योंकि किसी को आपकी खुशी बर्दाश्त हो जाए
आजकल ये भी बहुत बड़ी बात बन गई है।
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वैसे दोस्त तो उस को कहा जाता था जो दोस्त के लिए जान दे भी से और ले भी लेे ,वो तुम्हारी सारी भावनाओ को पढ़ ले......और भी बहुत कुछ ।
लेकिन ऐसा दोस्त आज न मिलने वाला है न ही हम को ऐसी कोई उम्मीद रखनी है
कर्ण ने दुर्योधन के लिए जान तक दे दी
हालांकि ये दोस्ती का एक महान उदाहरण है लेकिन मेरे अनुसार कर्ण एक दोस्त कम और दुर्योधन का ऋणी ज्यादा था
आजकल के जमाने में कर्ण तो नहीं मिलने वाला परंतु हम ऐसे लोगो के साथ अच्छा व्यवहार बना के रखे जो तुम्हारी खुशी में कम से कम दिल से खुश हो बुरे वक्त में तो परछाई भी साथ छोड़ देती है।
अपने माता पिता जो तुमको जान से ज्यादा प्यार करते है वो भी साथ छोड़ देते है।
वैसे भी इतिहास गवाह है ज्यादातर लोगों को बुरा वक्त अकेले ही काटना होता है ऐसे में तुम्हारी उन्नति, सफलता की कामना करने वाला हर सख्श तुम्हारा दोस्त हो सकता है।
मै अपनी बात करूं तो
कुछ कहना बड़ा मुश्किल है मैंने कभी किसी से ऐसे दोस्ती नहीं की की कोई मेरे बारे में सबकुछ जान सके , कभी ऐसी दोस्ती भी नहीं रही की गले में में हांथ डाले बागो ,खेतो ,खलिहानों में घूमे हो
बात ऐसी है कि हमारे घर का माहौल ही कुछ ऐसा था कि मैंने ही ऐसी दोस्ती रखी जो स्कूल तक ही सीमित हो
मुझे भी बहुत अच्छे दोस्त मिले जिनको अगर मै उचित समय और प्रेम देता तो शायद हम एक दूसरे के लिए जान ले लेने वाले दोस्त बन जाते फिर भी वो मुझे जब मिलता है तब हम दोनों एक दूसरे की खुशी की कामना करते है।
दो तीन साल में हम जो व्यव्हार कमाते है स्कूल बदलने पर सब बिखर जाता है।
नए लोगो के साथ ब्यवाहर बनाने और उनको समझ कर उनपर भरोसा करने में समय लगता है व्यक्ति की परख तो वक्त पर होती है और वक्त कब आयेगा ऐसा तो तय नहीं किया जा सकता।
वैसे मेरी एक महिला मित्र भी बनी है परंतु मै उससे भी अच्छी मित्रता नहीं निभा सकता क्योंकि ये भारत है यहां का एक बहुत ही प्रसिद्ध कथन है
"लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते "
बड़े शहरों की बात अलग है पर 80% भारत आज भी ग्रामीण सोंच वाला ही है और मै भी कुछ हद तक ग्रामीण ही हूं लेकिन मेरा मानना है कि हमे भेदभाव नहीं करना चाहिए
लैंगिक समानता के लिए हम कुछ कदम तो लेने पड़ेंगे नए लोगो को मौका देना होगा और उन पर भरोसा भी करना होगा।
वैसे अच्छी बात ये है कि तीन साल से मुझे एक ऐसा दोस्त मिल गया है जिसपे मै भरोसा कर सकता हू इतना तो पक्का है कि वो कभी मेरा बुरा नहीं चाहेगा हमारी दोस्ती अच्छी चल रही है पर पता नहीं क्यों उस दिन से डर लगता है जब हम दोनों अलग अलग शहरों में अपनी कुत्ते जैसी जिंदगी में व्यस्त हो जाएंगे।
खैर जो भी है , दोस्त और दोस्ती हमारे जीवन का आधार है।
हम जीवन में जितने भी लोगो को इस दोस्ती के धागों में पिरो सकते है हम को अवसर नहीं गवाने चाहिए ।
दोस्त की कीमत तब पता चलती है जब हम अकेले होते है और हमारे अपने भी हमारा साथ छोड़ देते है।
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