भारत दुर्दशा -1

                                            भारत दुर्दशा
मेरे  शीर्षक का नाम भारत दुर्दशा है क्योंकि आज बहुत कुछ नकारात्मक लिखने वाला हू ।।
क्योंकि कुछ ऐसी घटनाएं हो जाती है जिनको हम कितना भी चाहे पर नजरअंदाज नहीं कर पाते ।


वैसे तो ये बलात्कार , हत्या ,लूट ,डकैती .... सुनने में कुछ नया नहीं लगता मुझे क्योंकि जब भी अखबार खोलो एसी खबर मिल ही जाती है , और ज्यादा गम्भीरता से विचार करो तो हमारे आस पास ही कोई इस तरीके की घटनाओं झेलने वाले मिल ही जाएगा।

# रेड्डी जी के ब्लातकार और निर्मम हत्या से सारे देश के अंदर उबाल सा आ गया है और पूरा सोशल मीडिया हाहाकार मचाए है 
सब बोल रहे है बलात्कार की सजा फांसी हो, आग में जला दो , 
या बहुत कुछ सब अपने अपने तरीके से भावनाओ को व्यक्त कर रहे है ।

पर मुझे कोई ज्यादा संवेदना नहीं हुई पता नहीं क्यों??
शायद रोज होने वाली ऐसी घटनाएं पढ़ कर और दिन संवेदन शील होते होते मेरी संवेदन शीलता कम सी हो गई ..
इसका एक और भी कारण है 
सारे लोग 2 - 4 दिन रोएंगे चिल्लायेंगे और अपने अपने कामों में मस्त हो जाएंगे।



निर्भया कांड के बाद भी यही हुआ ।

जिस घटना पर आर्टिकल 15 मूवी बनी उसके बाद क्या हुआ सब भूल गए हर रोज अखबार में ऐसी घटनाएं निकलती है उसके लिए हमारी सरकार और हम सब क्या कदम उठाते हैं कोई कदम नहीं उठाते 
यही है असलियत जब कोई ऐसी घटना होती है तो लोग सबसे पहले उसका धर्म पूछते हैं जिसके साथ घटना होती है उसका भी जो घटना करता है

दो दिन से देख रहा हू लोग खास समुदाय को टारगेट करके गालियां दे रहे है , मै मानता हू की उस समाज में जाहिल, गवारो की संख्या ज्यादा है 
पर क्या ये हमारे देश की जिम्मेदारी नहीं की हम उनको सही शिक्षा नहीं दे पाए अब तक 

बलात्कार की सजा 7 साल है जो कि मेरे मायने में काफी है परन्तु ये जो निर्मम हत्याएं है जिसमें लोग क्रूरता की हद पार कर देते है उस स्थिति में हमारे कोर्ट को 1 माह के अंदर फैसला सुना देना चाहिए ।
वैसे फैसला सुनाने से भी क्या होगा क्योंकि निर्भया कांड में जिनको सजा मिली फांसी की उनको अब तक फांसी हुई नहीं है।

ऐसा नहीं है कि देश में सिर्फ लडकियां असुरक्षित है हम लड़के भी जब रात में निकलते है तो बहुत सोच समझ कर निकलते है 
परिवार लेकर निकलना ज्यादातर रद्द ही कर देते है।
क्योंकि मुझे याद है वो घटना अपने यूपी में मा और बेटी का रेप हुआ था  वो कार से की शादी से आ रहे थे 

इतनी सारी घटनाएं होती है फिर भी हम उसकी तरफ कोई कदम नहीं उठाते  क्योंकि हमारा रुचि  ये जानने में लगा रहता है कि पीड़ित लड़की दलित थी या सवर्ण या मुस्लिम
और दोषी को भी गालियां लोग धर्म जाति देख कर देते है 

खैर ये सारी बाते कुछ दिन में सब भूल जाएंगे  पुलिस ,सरकार , कोर्ट अपना काम आराम आराम से करेंगी 
लेकिन हम लोग अपनी बच्चियों के लिए क्या करने वाले है ??

क्या हम अपने बच्चो को सही शिक्षा दे रहे है???
क्योंकि मुझे लगता है सही तरीके से शिक्षा n देना भी इसी घटनाओं का कारण है 
मेरे हिसाब से सेक्स एजुकेशन को भारत में जगह मिलनी चाहिए ताकि लोगो को बताया जा सके कि क्या किसके साथ कब और कहा करना है??

खैर बलात्कार तो एक बुरी घटना है ही परन्तु हमारे सांस्कृतिक समाज में पीड़िता के साथ जो व्यव्हार होता है वह उस बलात्कार भी ज्यादा पीड़ा देने वाला है 
लोग कुछ इस कदर मजबूर करते है कि ज्यादातर लड़कियां आत्महत्या कर लेती है।

मेरे अनुसार ये लोग उस बलात्कारी से ज्यादा सजा पाने की हकदार है।
जो लोग धार्मिक और सांस्कृतिक रंग देने में लगे है इं घटनाओं को उनको बताना चाहता हू

सीता तब भी सुरक्षित नहीं थी 
आज भी सुरक्षित नहीं है
रावण से ज्यादा गिरी सोच वाली वो अवध की जनता थी जिसने सीता को चैन से जीने नहीं दिया
वो तो दैवीय रूप देने के लिए रचना कार ने लिखदिया सीता जी की प्रथ्वी मा अपने साथ ले गई 
अगर लॉजिक लगाओ तो यही साबित होता है कि उनको भी आत्महत्या ही करनी पड़ी होगी 

ये हम ही लोग है जो बेटी को देवी बनाते है फिर किशोरावस्था में उस को रसोई/पूजाघर में घुसने नहीं देते 
और धीरे धीरे उस देवी को नौकरानी / सेक्स टॉय/ पैरो की जूती भी बना देते है।

खैर नए पीढ़ी के मा बाप बच्चियों को बराबर जीने की राह प्रशस्त कर रहे है 
लेकिन वहा ये छोटी सोच वाले बलात्कारी /हत्यारे सकारात्मक कोशिशों को विफल कर देते है

मुझे नहीं लगता अभी 50 -60 साल तक इस देश के लोगो का कुछ होने वाला है 
सरकार से तो कोई उम्मीद है ही नहीं 
जब हमारी पीढ़ी शिक्षित हो जाएगी और गावारो की जनसंख्या 60 %से 6% रह जाएगी तब शायद कुछ सुधार हो ।

 हम सांस्कृतिक और धार्मिक लोगो से अच्छे तो वो असांस्कृतिक  मॉडर्न लोग है
जो रेप नहीं होने देते , बच्चो को आवश्यकता अनुसार शिक्षा देते है
और रेप हो भी जाए तो वहां का समाज पीड़िता को दुत्कारता नहीं ढांढस बढ़ता है 

अगर हम लड़की को एक लड़की ही समझे और उसे इंसानों की तरह ट्रीट करे तो काफी समस्याएं कम हो सकती है

लेकिन हमारे देश में ऐसा होना अभी तो संभव नहीं दिखता
क्योंकि  रोज होने वाली आनर किलिग और दहेज के लिए हत्या वाली घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं।
खैर बाते जारी रहेंगी .... 
अगले ब्लाग में

"वैसे तो हम अपने देश की संस्कृति की दुहाई देते रहते हैं लेकिन ऐसी घटनाएं भी तो हमारे देश के अंदर ही हो रही है और यह करने वाले भी हमारे देश वासी हैं 
आखिर कहां कमी रह गई हमारी शिक्षा जो ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं सही मायने में देखा जाए तो यह बढ़ नहीं रही है हमेशा होता आ रहा है फर्क इतना है 
अब मीडिया के माध्यम से ऐसी बाते हम को जल्दी पता चल जाती है। "

                                                thankyou





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