पहली नज़र

यह कहानी वास्तविक घटना से प्रेरित है इसीलिए मुख्य पात्रों के नाम नहीं है यदि है तो बदले हुए है।

 मुझे अच्छे से याद  है उस दिन मैं नए नवेले विद्यालय से एडमिशन लेके बस स्टैंड के लिए जा रहा था दिमाग में थी सब चलता जा रहा था की ‘नई जगह नए लोग न कोई जान पहचान का न ही कोई दोस्त’

छोटी नाक वाली लड़की


ऑटो में बैठा यही सोच रहा था के एक लडकी और लडका उसी ऑटो में सवार हुए लडकी के ड्रेसअप को देखकर ऐसा लग रहा था की जैसे बिल्कुल नई दुल्हन हो और साथ वाले लड़के से बहुत सारी बाते करते जा रही थी बस करती ही जा रही थी।

हालांकि मुझे उसकी बातो से कोई लेना देना नही था लेकिन मेरे कानो को उसकी आवाज इतनी प्यारी लग रही थी के मेरे कोशिश करने के बावजूद मैं अपना ध्यान उससे नहीं हटा पा रहा था मेरी आंखो ने तो मान लो बगावत ही कर दी ,मैं बार बार निगाहों को ऑटो के बाहर कर देता था लेकिन ये चोरी चोरी बस उसी को देखते जा रही थी ऐसा लग रहा था की अगर आज मैं पकड़ा गया तो बेज्जती न हो जाय ।

मेरे समझ नही आ रहा था की आखिर क्यों मैं एक शादीशुदा लड़की जिसका पति उसके साथ है उसे देखते ही जा रहा था शायद वो इतनी सुंदर थी के मैं क्या करता!

मैं देख रहा था की साथी लड़के की निगाह ऑटो के बाहर के नजारों पे जा रही थी लेकिन लड़की बस उस लड़के को देखे जा रही थी और मैं उस प्यारी सी लड़की को निहारते जा रहा था।

सच पूछो तो मुझे नही याद की उसने क्या ड्रेसअप किया था धुंधली सी याद है की शायद सलवार सूट था लेकिन उसके चेहरे की मासूमियत उस पर एक छोटी सी नाक और अमेजिंग मुस्कुराहट अच्छे से याद है मैं उसे जानता भी नही था फिर भी दिल से यही दुआ निकली की वो हमेशा ऐसे ही खुश रहे।

उसके साथ मेरा मतलब था की उसे निहारते हुए वक्त इतना जल्दी बीत गया की पता ही नहीं चला और हम केसरबाग पहुंच गए।

उनकी बातो से मुझे पता चला की लड़की ने यहां किसी कॉलेज में एडमिशन कराया और आने वाले 2 साल इसी शहर में बिताएगी 

तो जब 15 जुलाई को मैं अपने कॉलेज पहुंचा तो मुझे मिला सरप्राइज़ ...! और मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई

उस लड़की ने मेरे ही कॉलेज में एडमिशन लिया था अगला झटका तब लगा जब पता चला की मेरे ही साथ क्लास में अगले 2 साल बीतेंगे..

उस दिन मैं बहुत खुश था क्योंकि भगवान ने मेरी इच्छा बड़ी जल्दी पूरी कर दी वो भी ऐसी जो मेरे लिए अकल्पनीय था। इतने बड़े शहर में उसे मेरा ही कॉलेज और मेरा ही क्लास क्यों ज्वाइन करना था आखिर चल क्या रहा था भगवान के मन में।

खैर..! अब तो मेरी मुश्किल शुरू ही हुई थी 

क्योंकि मेरी निगाहें मेरे नियंत्रण में नहीं थी बस हर वक्त उसी को देखती रहती थी और दिमाग बोल रहा था , की वो किसी और की अमानत है ।

“बड़ा अजीब सा मंजर है ये दिल बस उसी को चाहता है , सच में बड़ा ही कंजर है”





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