भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन राष्ट्रीय एवम् क्षेत्रीय आह्वानों, उत्तेजनाओं एवम् प्रयत्नों से प्रेरित, भारतीय राजनैतिक संगठनों द्वारा संचालित अहिंसावादी और सैन्यवादी आन्दोलन था, जिनका एक समान उद्देश्य, अंग्रेजी शासन से भारतीय उपमहाद्वीप को मुक्त करना था। इस आन्दोलन का आरम्भ 1857 में हुए सिपाही विद्रोह को माना जाता है। जिसमें स्वाधीनता के लिए हजारों लोगों की जान गई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1929 के लाहौर अधिवेशन में अंग्रेजों से पूर्ण स्वराज की माँग की।
1893 का भारत |
वैसे तो भारत में हमेशा ही अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह होते रहे कहीं सन्यासी विद्रोह तो कहीं बहावी विद्रोह इसी प्रकार जनजातीय लोग भी अपने हिसाब से कई सारे विद्रोह करते रहे क्योंकि अंग्रेजों का शासन का तरीका हम भारतीयों पर बहुत है ज्यादा कष्टकारी था क्योंकि उन्हें हमारी फसल और धन स्थितियों से कोई लेना-देना नहीं था वह बस हमें लूट रहे थे इसमें उन्होंने शामिल किया जमींदारों को वह जमींदार भले ही भारतीय थे लेकिन अंग्रेजों के साथ मिलकर कई सारे जमींदारों ने भारतीयों का खून चूसा
सही से देखा जाए तो जमींदारों की कोई ज्यादा गलती नहीं थी क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं करते तो जमींदार अंग्रेज बन जाते, तब हमारा खून कुछ ज्यादा ही चूसा जाता
सही मायने में हम भारतीयों ने कांग्रेस की स्थापना के बाद सही तरीके से आंदोलन अथवा विद्रोह का आवाहन किया अपने अधिकारों के बारे में जानना सीखा और उन्हें प्राप्त करने के लिए ऐसे प्रयास किए जो अंग्रेजों ने मना नहीं कर पाए।
इसी प्रकार धीरे-धीरे अपने पूरे भारत में कांग्रेस का वर्चस्व फैला और गांधी जी के आने के बाद असहयोग आंदोलन और कई प्रकार के आंदोलन की वजह से पूरे भारत की जनता में स्वतंत्रता की भावना उमड़ी, ये नहीं कहूंगा गांधी जी ने कोई गलतियां नहीं की गलतियां सबसे होती हैं गांधी जी से भी हुई लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह भारत को स्वतंत्र देखना नहीं चाहते थे वह भी उतना ही भारतीय थे जितना कि हम हैं जितना कि सुभाष चंद्र बोस है या फिर भगत सिंह सिद्धांत अलग अलग हो सकते हैं लेकिन इरादे अलग नहीं थे।
वैसे बंगाल विभाजन के समय जो स्वदेशी आंदोलन चला वह बहुत ही महत्वपूर्ण था उसने जनता में स्वदेशी के प्रति भावनाएं जगी इसी के बाद 1920 में खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन बहुत प्रभावी रहे अगर चोरी चोरा कांड नहीं हुआ होता तो शायद भारत की तस्वीर कुछ और ही होती क्योंकि उस समय पाकिस्तान कि कोई परिकल्पना ही नहीं थी अगर भारत आजाद होता तो यह एक अखंड भारत होता खैर ऐसा नहीं हुआ।
फिर सेकंड वर्ल्ड वॉर के समय सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों का कड़ा मुकाबला किया इसके दौरान गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन चलाया इस आंदोलन में जनता ने बढ़ चढ़कर सहयोग किया यह एक जन आंदोलन बन गया इन सभी स्थितियों से अंग्रेजों को एहसास हुआ कि वह भारत में शासन नहीं कर पाएंगे और विश्वयुद्ध में उनको इतना धन हानि हुई थी कि यह अब उनके बस में भी नहीं था अर्थात मजबूरन उन्हें भारत छोड़ना पड़ा।
इसमें सभी का योगदान है जो बाहर से आक्रमण कर रहे थे जो अंदर आंदोलन कर रहे थे सभी का किसी एक को पूरा क्रेडिट देना ठीक नहीं रहेगा
भारतीय आधुनिक इतिहास की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं.
1498 : वास्को डि गामा भारत आया
1600 : ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना
1748 : भारत में आंग्ल-फ्रांसीसी युद्ध
1757 : प्लासी का युद्ध
1769 : चुआड़ विद्रोह
1799 : अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को हराया
1775 : आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-1819)
1856 : आंग्ल-सिख युद्ध ; सिखों की पराजय
1857 : भारतीय स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम
1885 : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
1905 : अंग्रेजों द्वारा बंगाल का विभाजन
1915 : एनी बेसेंट ने होम रूल काँग्रेस की स्थापना की
1919 : खिलाफत आन्दोलन, जलियांवाला हत्याकांड, रौलट एक्ट
1921 : महात्मा गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन
1922 : चौरी चौरा काण्ड ; गांधीजी ने अवज्ञा आन्दोलन वापस लिया
1928 : साइमन आयोग का विरोध करते हुए लाला लाजपत राय लाठीचार्ज में गम्भीर रूप से घायल
1930 : गांधीजी की दाण्डी यात्रा और नमक सत्याग्रह, प्रथम गोलमेज सम्मेलन
1931 : द्वितीय गोलमेज सम्मेलन और गांधी-इरविन समझौता
1942 : भारत छोड़ो आंदोलन
1946 : नौसेना विद्रोह (मुंबई)
1947 : भारत का विभाजन, अंग्रेजों ने भारत छोड़ा, आधी रात को अंग्रेजों से मुक्ति
1961 : गोवा पुर्तगाल से मुक्त
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