असामाजिक समाज 1

                                          

                हांथी के दांत

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वो कहते है न , हांथी के दांत खाने के और व दिखाने के और होते है।
ऐसा ही हाल हम सब का है , हमारे घरों का व समाज का 
हर बन्दा चिल्लाता घूमता है , हमें स्कूल में रोज नारा भी लगवाया जाता है कि "सदा सत्य बोलो"

जबकि वास्तविकता क्या है हमारी हम सब जानते है जब हम सत्य बोलना शुरू करेंगे ,हो सकता है कि हमारे मा बाप ही हम को धक्के दे के घर से निकाल देंगे।
समाज हम को पचा पाए इसकी कल्पना करना ही चूतियापा है, शायद तभी संत वैरागी होते हैं क्योंकि वो इस समाज के दोगले पन से तंग आ चुके होते है।
ये भी हो सकता है जब जब कोई समाज सुधार की प्रक्रिया चालू करता है तो ज्यादातर भक्त टाइप के रूढ़िवादी ,जातिवादी हरामखोर लोग उस बन्दे को ही सुधार देते है 

छोटे मोटे आदमी को तो जीने ही नहीं देते और जब कोई टक्कर का इंसान हो तो लोग उसे बदनाम करने और समाज से निष्कासित करने के लिए प्रयत्न किए जाते है।
यही है हमारा प्यारा समाज जिसने देवी सीता को भी आत्महत्या को मजबूर ही कर दिया।
जितने जख्म कोई बलात्कारी नहीं दे पाता उससे ज्यादा जख्म ये समाज पीड़ित पर बकैती कर कर के  दे देता है 

लोग गालियां तो राजा राम मोहन राय को भी देते है आज के जमाने में भी कुछ भक्त है जो सती प्रथा का समर्थन करते मिलते रहते है
खैर अपना मुद्दा था कि सदा असत्य बोलने वाला बाप भी शरुआती दिनों में अपने बच्चो को यही बोलता है कि सदा सत्य बोलो 

कभी सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों??
हर कमीना हम को ईमानदारी के पाठ पढ़ाने चला आता है, आखिर क्यों?
हमें राम बनने शिक्षा देंगे खुद भले ही रावण हो,आखिर ऐसा क्यों?

ऐसा सिर्फ इसलिए है
ताकि वो तुम्हारा लाभ उठा सके...
तुम सत्य बोलोगे तो लोग तुम्हारी क्षमताओं का सही आंकलन करने में सक्षम हो जाएंगे
तुम ईमानदार होगे तो लोग तुम्हारे साथ बेईमानी करने में ज्यादा इंटरेस्टेड होंगे
तुम राम बनोगे तो हर गली नुक्कड़ वाला नपोरा आदमी भी तुमको रावण की तरह परेशान करेगा।

चीजें थोड़ा पेंचीदा है शायद समझ न आ रही हो
उदाहरण से समझो

बेटा सत्य बोलता है तो पड़ोसियों को चिल्ला चिल्ला के बताएंगे 
लेकिन जब किसी अंकल के पूछने पर बेटा बोल दे पापा घर पे ही है तो उसी सत्यवादी को गालियां, चप्पल आदि भी मिल जाता है...!
दूसरा उदाहरण
पुरुखो की बेईमानी से कमाई गई दौलत को बेटा गरीबों में बांटने लगे तो वो ईमानदारी का राग गाने वाले उसके घर वाले ही उसको घर से निकाल देंगे।

इन उदाहरणों का मतलब ये नहीं कि तुम झूठ बोलना शुरू कर दो रावण बन जाओ 
निष्कर्ष ये है जब तक लोग तुमसे लाभ लेते रहते है तुम्हारे काम से अपनी इज्जत सम्मान को बढ़ाते रहते है तब तक तो तुम्हारे सके कर्म या कुकर्म पुण्य के कार्य ही है
जैसे ही तुम्हारे किसी अच्छे या बुरे कार्य से इस समाज या घर वालो के अहंकार को ठेस लगी तो वो कार्य पाप घोषित हो जाएगा।

मै कोई भगवान नहीं पर ग्रंथो का अध्ययन करते हुए इतना पता चला है कि कोई फरमान नहीं जारी किया गया कि सदा सत्य बोले जाने का 
जो भी बोलो हमेशा यही ध्यान रखो कि उससे तुम्हारे उपर क्या असर होगा और दूसरे को कोई नुकसान न हो या कम से कम नुकसान हो।

हमें बच्चो को स्टरियोटाइप नहीं बनाना चाहिए हमे उनको ऐसे शिक्षा देनी चाहिए कि वो स्वतंत्र रूप से बेहतर इंसान बन सके ये समाज उनका चूतिया बनाकर लाभ न उठा सके।

ज्यादातर बच्चो को स्कूल के बाद समाज में एडजस्ट करने में बड़ी दिक्कत होती है
क्योंकि स्कूल की शिक्षाएं, मौलिकता आदि 90% स्कूल में ही छोड़नी पड़ जाती है क्योंकि वास्तविक जीवन में उनका स्थान सिर्फ दिखावे के लिए किया जाता है
स्कूली शिक्षा हमारे लिए हांथी के दिखाने वाले दांत के समान है असली शिक्षा तो समाज हम को देता है 
हमारा घर और परिवार देता है

खैर समाज और इसके रूढ़िवादी नियम इंसानों को सुविधा देने के लिए बने थे 
जब समाज के नियम जिसकी लाठी उसकी भैंस वाले हो जाए तो समाज में जंगलियों के जंगलीपन को कोई नहीं रोक सकता
इससे बेहतर ये होता हम जंगल में ही होते हम को कम से कम कोई भ्रम तो न होता कि हम सुरक्षित है

खैर अब बूढों को तो नहीं सुधारा जा सकता हमारे हांथ में आगे की पीढ़ी है
उम्मीद है आप भी नयी पीढ़ी को बेहतर इंसान बनाने का प्रयास करेंगे


                                                               धन्यवाद

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