महिला दिवस और उनका सशक्तिकरण

मै किसी भी प्रकार के फेमिनिज्म का सपोर्टर नहीं ।


I support women empowerment


 मैं तो बस आसपास के माहौल को देखकर इतना ही कह सकता हूं जो बलवान होता है वह अपने से कमजोर को हर पल हर क्षण बस दबाने का प्रयास करता है उसका डर यही होता है की दूसरा व्यक्ति उससे आगे ना निकल जाए कुछ इसी तरह हमारे पुरुष समाज में भी बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो महिलाओं को आगे बढ़ने नहीं देते और अब तो हमारा सामाजिक संगठन ही कुछ ऐसा हो गया बहुत सारे लोग चाहते हुए भी अपने घर की महिलाओं को वह सब कुछ अधिकार प्रदान नहीं कर सकते जो कि वह कर सकते हैं करना चाहते हैं क्योंकि उनके बीच में समाज आ जाता हैं

उनसे पूछने पर पता चलता है कि लोग वही करते हैं जो उनके समाज में चलता रहा है वह कुछ नया करके अपने लिए आफत मोल लेना नहीं चाहते
वो ढेर सारे सवालों से बचने के लिए कुछ ऐसे कदम उठा रहे है   उनको खुद भी पसंद नहीं

खैर आपको बता दूं हम उस समाज में रहते हैं जहां लड़कियां सिर्फ लड़कियां नहीं होती हैं
वह देवी होती हैं लक्ष्मी ,दुर्गा ,सरस्वती होती हैं हम उनको बहुत सारा आदर सम्मान करते हैं
उनकी पूजा होती है नव दुर्गा पूजा में  नारी शक्ति के रूप की प्रशंसा होती है

फिर यह वही समाज है जिसने सीता की परीक्षा लेकर उन्हें एक तरीके से आत्महत्या के लिए ही मजबूर कर दिया अब यह तो वाल्मीकि जी ने लिख दिया की धरती मा उनको साथ ले गई पर मेरा मानना है कि वह 1 तरीके की आत्महत्या की थी जिसमें वह जमीन में कूद के मर गई
यह वही समाज है जहां अहिल्या को पहले धोखा दिया गया और बाद में श्राप
लोग आज भी इस सजा को जस्टिफाई नहीं कर पा रहे
पर महिलाओं के पहनावे के प्रति बकैती पेल के करते रहते है

ऐसा नही की स्वादिष्ट भोजन देख के खाने का मन न हो कुछ चीजे प्राकृतिक है पर क्या हम उस भोजन को व्यव्हार से मांग के खाएंगे ,खरीद के या फिर छीन के
समाज की हालत ये है कि ये छीन के खाने वालो को सपोर्ट करते है
असुरक्षा की नीव यही से पड़ती है

एक होता है जंगल जहा कोई नियम नहीं होता वहां ताकतवर ही राज करते है अपने से कमजोर पे, इस सब से बचने और बेहतर जीवन के लिए हमने बनाया समाज जिसमे कुछ नियमों का पालन कर के हम सुरक्षित जीवन जी सकें
पर आज का समाज जंगली लोगो और उनके विचारों से भर चुका है
क्योंकि छीन के चीज प्राप्त करना जंगली व्यव्हार है
 समाज में इन विचारों को जगह मिलने लगे और ऐसे लोगो का समर्थन हो तो समाज और जंगल में ज्यादा फर्क नहीं रह जाता

हम समाज में रौब जमाने केलिए पैसा ,गाड़ी बंगला समाज में दिखाते भी है और हम डरते भी है कि हम से ये सब कोई छीन न ले
इसीलिए हम सुरक्षा के लिए गनर & गार्ड रखते है जब हम पूर्ण सुरक्षित हो जाते है तब दूसरो को भी सुरक्षा देते है
जब कोई हमारी बात नहीं मानता तो हम दूसरो को असुरक्षित भी महसूस कराते है उनकी चीजे छीन कर

ऐसे ही हम एक बाप/ भाई के रूप में इतना डरते है इस समाज से कि हम लड़कियों की आजादी ही छीन रहे है, दूसरी तरफ ससुर/पति के रूप में अपने वर्चस्व के लिए हम लड़कियों को बेवजह ही  उचित सम्मान नहीं दे रहे जिसकी वो हकदार है

हर जगह एक जैसा हाल नहीं है कही कहीं बेहतर भी है महिलाओं को बहुत सारे अधिकार दिए हुए है
कई ऐसे भी परिवार है जहा महिलाओं का ही वर्चस्व है
कई जगह महिलाओं ने भी आतंक मचा रखा है फिर भी कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि पुरुषों का वर्चस्व ज्यादा है

तो मुद्दे की बात यह है
 क्यों महिलाओं हो सारे अधिकार नहीं मिल पा रहे हैं??
मैंने जवाब निकालने का प्रयास किया है किं हम पुरुष महिलाओं के प्रति कुछ ज्यादा ही प्रोटेक्टिव होने की कोशिश करते है
हम भूल जाते हैं कि हमारी अत्यधिक सुरक्षा उनकी  आजादी छीन लेती है असलियत ये है कि
 हम पुरुष महिलाओं की सुरक्षा कर रहे है उनको बचा रहे है अपने ही आस पास के पुरुषों से
वो पुरुष कही आसमान से नहीं आते वो भी समाज के अंग है ये वही समाज है जो लड़कियों की सुरक्षा आचरण आदि का ठेका लिए रहता है, और इसी समाज में लोग बलात्कारी ,लुटेरे ,चोर बड़े पद पर पहुंच रहे और सम्मान भी पा रहे है।

बुरे लोग कहां नहीं होते हैं यह सही है लेकिन इन बुरे लोगों की संख्या कम होनी चाहिए लेकिन जब मैं अपने आसपास देखता हूं तो मुझे बुरे लोग बहुत ज्यादा दिखाई देते हैं जो हर पल हर क्षण अपने फायदे के लिए किसी की मजबूरी का फायदा उठाने में देर नहीं लगाते
और जो लोग निस्वार्थ भाव से किसी की मदद करते हैं तो यही समाज उनको चूतिया बोलता है
ऐसे ही कई सारे पति अपनी पत्नियों को नहीं पढ़ा पा रहे हैं क्योंकि यह समाज नहीं चाहता क्योंकि यही समाज उन पतियों को बाद में कहेगा
" साले बीवी की कमाई खा रहे"
 उनका मजाक बनाया जाता है
अब मैं यह तो नहीं कह सकता कि रोकने वालों को गोली मार दो क्योंकि रोकने वाले तो हमारे परिवार के सदस्य भी हो सकते हैं
 हो सकता हैं हमारे मां-बाप ही हो
जब हम इस कदर कुछ सामाजिक संगठन को देखते हैं
तो समाज के लिए दिल से एक ही आवाज आती है

     "बहुत हुआ सम्मान"

महिला को महिला समझ के इंसानों की तरह बर्ताव हो तो ही हम महिलाओं को काफी हद तक सशक्त कर सकते और बराबरी दे सकते

हमारी... महिला को देवी समझना या पैर की जूती समझने वाली सोच दोनों ही महिलाओं के लिए घातक है
बेहतर होगा हम शिक्षा में आधुनिक विचारों को डाले।
थोड़े जागरूक और बेशर्म भी बने ताकि सही शिक्षा सही समय पर मिले
हमारी शर्म भी हमें सही काम से रोकती है और छोटे बच्चे  जब बड़े कांड कर देते है तब सिर्फ पछतावा होता है।


जब हम समाज से ज्यादा अपनी बेटियों के बारे सोचेंगे वो निर्णय लेंगे को उसके लिए बेहतर हो तब ही असली महिला सशक्तिकरण होगा

खैर असलियत तो ये है कि लोग समाज के लिए बेटियों को कतल कर देते है
उसके बाद गर्व से अपनी जाति और समाज के संरक्षक होने का दम भी भरते है
अब ऐसे समाज से महिला उत्थान होने की उम्मीद तो नहीं है खैर थोड़ा थोड़ा विकास हो रहा है 70 साल बाद शायद स्थिति बेहतर हो जाए


आपको क्या लगता है कितना हुआ महिला सशक्तिकरण अपने विचार भी कमेंट बॉक्स में लिखें


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