ये कोई नया सवाल नहीं है?
हजारों साल से लोग इस सवाल में उलझे है और लड़, कट, मर रहे है.
मै तुम से पूछता हु तुम बताओ ,आखिर क्या हो तुम?
आज भी लोग ये किसी के बारे में जानकारी लेते वक्त सबसे पहले उसकी जाति जानने की कोशिश करते है ताकि हिसाब लगा सके किसी कितनी इज्जत देनी है ।आज भी खबर आती है कि किसी 1 जाति के लोगों ने दूसरे जाति के लोगों की बारात घोड़ी से नहीं निकलने दी ,ऐसा नहीं है कि ये सब सिर्फ अख़बार और टी वी तक सीमित है ,आप देखो अपने आस पास कितना समाज में जहर घुला हुआ है ऐसा नहीं है कि ये जहर किसी खास जाती में फैला है ये जहर हर वर्ग में है।
आजभी बन्दा पढ़ लिख कर बैंक में जॉब पा ले 50 हजार कमाने लगे फिर भी जब शादी की बात होगी तो ज्यादातर उसके घर वाले उस को किसी निश्चित जाति की लडकी साथ में दहेज का सौदा तय करते है
लड़का मजबूर किया जाता है अगर वो चीजे समाज के अनुसार नहीं करेगा तो समाज उसकी और घरवालों की इज्जत नहीं करेगा
तुम विचार करो जहा दहेज लेना गरिमा का विषय बन जाए तो उस समाज से वो बुराई जाएगी???
ऐसा नहीं है कि लड़के वाले ही कमीने है लडकी वाले भी कम नहीं है क्योंकि उनका पूरा फोकस प्रॉपर्टी पर होता है वो लडकी के लिए इन्वेस्टमेंट करते है या बीमा कह लो क्योंकि वो अपनी लडकी के लिए ऐसी फैमिली ढूंढते है जहा लड़के के हिस्से ज्यादा प्रॉपर्टी हो ताकि कोई दुर्घटना हो तो लडकी को उस प्रॉपर्टी का पूरा मालिकाना हक मिल सके
लड़का देखते समय सबसे ज्यादा महत्त्व उसकी/उसके पिता के आर्थिक हालातो को दिया जाता है
ये हमारे पढ़े लिखे माध्यम वर्गीय घरों के हालात है जहा लोग पढ़े लिखे समझदार तो है आज की शादी सिर्फ एक सौदा बन के रह गई जिसमें लडकी वाला अपनी बेटी को दस लाख इन्वेस्टमेंट के साथ 1 करोड़ की मालकिन बनाने पर पूरा जोर देता है इसी तरह लड़के वाले भी ज्यादा से ज्यादा वसूलने पर फोकस करते है उनको लडकी के विचार व्यव्हार से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता
नौटंकी पूरी की जाती है लडकी संस्कारी होनी चाहिए, फलाना, धिमाका ... जहा 1 लाख बढ़ते है सब एडजस्ट हो जाता है।
खैर ये तो हालात है हमारे मध्यम वर्ग के
हम नई पीढ़ी चाह के भी कुछ नहीं कर पाते क्योंकि बाप की इज्जत को खतरा होगा तो वो गोली भी मार सकता है कुछ नहीं तो संपत्ति से बे दखल कर सकता है ,और इतना बड़ा समाज सुधारक कोई नहीं (लगभग) जो अपने घर वालो का विरोध करते हुए समाज का कल्याण करने का कदम उठाए
ऐसा नहीं है कि हम सब लालची है सच तो ये है कि ये लोगो की पीढ़ी समाजिक कुरीतियों में कुछ इस तरह खोई हुई है हमारी जबरदस्ती किसी की जान भी ले सकती है मुझे नहीं लगता हम में से कोई भी समाज सुधार के लिए परिवार के सदस्य की जान खतरे में डालेगा।
ऐसा ही हाल जातिवादियों का भी है वो भी सब जानते है कि किस से कैसा व्यवहार करना है ,क्या सही है ,क्या ग़लत??
लेकिन कोई चीजे सुधार कर कोई हीरो नही बनना चाहता क्योंकि आप कुछ भी अच्छा करेंगे तो दाग लगेंगे और टीवी में ही सुनने में अच्छा लगता है कि "दाग अच्छे है"असली जीवन में ऐसा रिस्क कोई नहीं लेना चाहता ।
एक तरफ मानते है कि हम सब भोले बाबा की संतान है
हम ये भी आज मानते है कि शुरुआत में जातियां कर्म आधारित थी बाद में इन्हे कुछ पाखंडियों ने इसके स्वरूप को ऐसा बिगाड़ दिया साला आज तक लोग सजा भोग रहे है ।
शायद ये वही हरामखोर रहे होंगे जिन्होंने नियम बनाए की राजा का लड़का ही राजा बनेगा ताकि शक्ति खास लोगों के पास ही रहे खैर अब पुरानी बाते याद करने से सिर्फ कुंठा ही होगी कुछ लाभ नहीं मिलने वाला
इतिहास का अध्ययन हम इसलिए करते है ताकि हमसे फिर से कोई ऐसी भूल न हो जो इतिहास कर चुका है हम को बदले की भावना नहीं विकसित करनी चाहिए क्योंकि जिनकी गलती होती है वो कब के मर चुके।
एक बन्दा मुझे मिला था किसी ने उसे उसकी जाति नहीं पूछी फिर भी वो चिल्ला चिल्ला के बता रहा था
ये उसी तरह का जातिवादी था जो फेसबुक पर अपनी जाति के पोस्टर घटिया फोटोशॉप का स्तेमाल करके बनाते है खैर वो पढ़ा लिखा था और कंपटीशन की तैयारी कर रहा था
जितना मै उसके परिवावालों को जानता हू वो कोई गरीब इंसान नहीं ,अब उसके बुजुर्गो के बारे में नहीं पता पर उसके पिता सरकारी कर्मचारी है और उसका जीवन मेरे से तो बेहतर ही कटा फिर भी उसके मन में इस बात की कुंठा थी कि
5000 साल पहले सवर्णों ने उसकी जाति के लोगों के साथ अत्याचार किए अब समय है बदले का वो आरक्षण ख़तम नहीं होने देंगे ताकि सवर्ण को दबाया जा सके.... और भी बहुत कुछ
मुझे ऐसा लगा भाई ने प्लान तो जबरदस्त बनाया है लेकिन बन्दा भूल गया वो प्रार्थना जो हम सब एक साथ करते थे जिसमे एक लाइन थी " बैर हो न किसी का किसी से , भावना मन में बदले कि हो न"
उसकी कुंठा उसके ज्ञान पर भारी पड़ गई थी
उसके दिमाग में ये नहीं आया कि न हम में से कोई ऐसा सवर्ण है जिसने किसी पर अत्याचार किए और न ही वो ऐसे दलित जिस पर अत्याचार हुए।
आखिर वो किस से बदला लेगा???
ये तो ऐसा है की आज कोई ब्रिटिश नागरिक भारत घूमने आए और यहां के अनपढ़ जाहिल स्वघोषित देशभक्त उनको पीट दे उनके पैसे छीन ले और उनकी बीवी के साथ रेप कर दे
और गर्व से सीना चौड़ा करके बोले ' देखो मैंने अंग्रेजो से बदला ले लिया '
अब तुम है सोचो जिस ने जुर्म किया उसका कोई कुछ उखाड़ नहीं पाया और 500 साल बाद कोई किसी को इसलिए मार दे क्योंकि उसका उपनाम मिलता जुलता है।
सत्य तो हम में से किसी को नहीं पता क्योंकि हम खुद तो वहां मौजूद नहीं थे सुनी सुनाई कहानियों पर अंधा भरोसा
करके खुद को कुंठित नहीं करना चाहिए हो सकता हो ये सब सच तो भी आज का कोई देशवासी उस जमाने के क्राइम का जिम्मेदार तो नहीं माना जाना चाहिए
ऐसा नहीं है कि सवर्ण दूध के धुले है आज भी जातीय उंच नीच समाजिक संगठन में बराबरी को लेकर कई सारे मुद्दे है और हम को सब कुछ ठीक करने की जरूरत है
लेकिन बदले की भावना ऐसा नहीं होने देगी
न मै नेहरू जी का विरोधी हू न ही RSS का और न ही अम्बेडकर का उन्होंने ने अपने समय के अनुसार ठीक निर्णय लिए थे सब देश हित ही चाहते थे आज भी हम सब देश हित ही चाहते है
लेकिन पीछले 70 सालो ने आज तक हम को कभी पंडित,ठाकुर,बनिया ,धोबी , कहार,..सोनार... फलाना.. ढिमाका से उपर नहीं उठ पाए
जब तक जातिवादी राजनीति है तब तक जातिवाद है
सत्य यही है कि कोई पढ़ा लिखा इंसान अपने परिवार में फैले जातिवाद ,पुरुषवाद की विचारधारा से जन्मी कुरीतियों को ख़तम नहीं कर पाता तब तो तुम ही विचार करो हम अकेले तो कुछ नहीं बदल सकते ।
मेरी बात धर्मांध लोगो के समझ नहीं आएगी
क्योंकि वो सिर्फ 1 ही दिशा में सोचते है सच ये है 70% से उपर भारतीय धर्मांध है
देश की उन्नति तो तब होगी जब हम सही तरीके से खुद की पहचान कर सकेंगे, उम्मीद है कम से कम हम जो पढ़े लिखे है अपने बुजुर्गो को नहीं सुधार सकते शायद वो सुधर भी नहीं सकते लेकिन हम सब स्वयं तो खुद को दलित, शोषित ,वंचित ,कुंठित,साबित करने की रेस में न दौड़े ।
हमारे लिए जरूरी है कि हम अपनी पहचान इंसानियत और हिंदुस्तान से ही जोड़े ।
जय हिन्द
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