18 सितम्बर शिक्षक डायरी

                    शिक्षक डायरी

आज भी कुछ देर से ही रूम से निकल पाया 
और देवी के दर्शनों के लाभ से वंचित रह गया तभी मै एक ऑटो में बैठा जिसमे 4 लड़कियां आकर बैठी वैसे तो मुझे उनमें कोई इंटरेस्ट नहीं था लेकिन बातो बातो में मैंने भी कुछ बाते की और पता चला कि ज्यादातर लोग अपने प्रिय जनों की फाइलें लिख रहे है अपनी फाइल को ठेके पर दिए है।
खैर मोटू और पतलू की जोड़ी मेरे साथ ही अाई और रास्ते भर इंटरेस्ट न होते हुए भी आंखे अवलोकन कार्य से नहीं चूंकी।

विद्यालय 5 मिनट देर से पहुंचा वहां प्राथना सभा हो चुकी थी और राजमाता 2 युवतियों को गरिया रही थी ।
क्योंकि उन्होंने ड्रेस नहीं पहनी थी मेरा मतलब है यूनिफॉर्म से है।


राजमाता का कहना था कि उनकी ड्रेस बहुत ही ज्यादा सेक्सी है उनको इतने भड़कीले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
     एक तरह से
फेमिनिज्म को आग लगाने का काम एक फीमेल ही कर रही थी उस समय तो मै भी पूरा फेमिनिस्ट हो गया था
मेरा दिल चिल्ला चिल्ला कर बोल रहा था कि -
इस आजाद देश में क्या लड़कियों को मनचाहे कपड़े पहनने की आजादी मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए?
आप बताइए मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए ???

राज माता को लगता है कि हम लडके उन लड़कियों के वस्त्र देखते है खैर अब उनको कौन बताए कि हम सांसारिक चीजों से परे हो चुके है 
हम तो बस मन देखते है और भावनाए पड़ने का प्रयास करते है।
इतनी खूबसूरत लगरही लड़कियों का उतरा हुआ चेहरा देखकर हृदय विचलित हो रहा था।
मेरी नजर उनके चेहरे के हावभाव पर थी जबकि राजमाता अब भी उनके कपड़ों में ही उलझी थी और बडबडा रही थी।
खैर भावनाओ के भवर से बाहर आकर मैंने राजमाता को प्रणाम किया और उनसे आज किए जाने वाले कार्यों के आदेश प्राप्त किए।

खैर अच्छी बात ये हुई कि मुझे राजमाता के हाथ के आलू भरे पराठे खाने का लाभ प्राप्त हुआ जोकी लंबे समय के बाद खाने के कारण और भी अच्छे लग रहे थे 

भोजन वगैरह निपटा कर हम सभी दिए गए आदेश पूरे करने में लग गए।
और आज फिर छुट्टी में घनघोर घटा छाई और सबका जन जीवन अस्त व्यस्त हो गया ।
मै भी 5 मिनट की रास्ता 1 घंटे से ज्यादा समय में पार कर पाया

मै तो पूरा भीग ही गया और साथ में मेरी दैनिंदनी भी ...
😞

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